अरबी अंक
अरबी अंक 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 और 9) संख्याएँ को लिखने के लिए सबसे अधिक प्रयुक्त किये जाने वाले प्रतीक हैं। ये अंक दशमलव प्रणाली का हिस्सा हैं, जिसमें अंक की स्थिति उसके मान को निर्धारित करती है। इन अंकों का उपयोग अन्य संख्या प्रणालियों जैसे अष्टाधारी संख्या पद्धति, द्विआधारी संख्या पद्धति, और षोडशाधारी संख्या पद्धति में भी किया जाता है। इसके अलावा, ये प्रतीक गैर-संख्यात्मक जानकारी जैसे व्यापार चिह्न और वाहन पंजीकरण प्लेट में भी होते हैं।
इन अंकों को पश्चिमी अरबी अंक'[1], यूरोपीय अंक', ग़ुबार अंक (Ghubār numerals)[2]इन अंकों को हिंदू-अरबी भी कहा जाता है। ऑक्सफ़ोर्ड अंग्रेजी शब्दकोश में इन अंकों के लिए छोटे अक्षरों वाले "अरबी अंक" शब्द का प्रयोग होता है, जबकि पूर्वी अरबी अंकों के लिए बड़े अक्षरों वाले शब्दों का प्रयोग होता है।
इतिहास
समकालीन समाज में "अंक", "संख्या" और "अंक शब्द" केवल अरबी अंकों को दर्शाते हैं, हालांकि इसका अनुमान संदर्भ से ही लगाया जा सकता है। यूरोपीय लोगों का 10वीं शताब्दी में अरबी अंकों से परिचित होना शुरू हुआ लेकिन इनका प्रसार एक क्रमिक प्रक्रिया थी। इतालवी विद्वान फिबोनाची ने 13वीं शताब्दी में अल्जीरिया के नगर बेजाया से इन अंकों की जानकारी प्राप्त की और उन्होंने इसे अपनी पुस्तक लिबेर आबाची (Liber Abaci) में स्थान दिया। इसके माध्यम से यूरोप में इन अंकों को पहचान मिली। 15वीं शताब्दी में प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार के बाद इनका उपयोग उत्तरी इटली से बढ़कर पूरे यूरोप में फैल गया। यूरोपीय व्यापार, पुस्तकों और उपनिवेशवाद के दौर ने इन अंकों को विश्वभर में फैलाने में मदद की, और ये अन्य लेखन प्रणालियों में भी शामिल किए जाने लगे।[3]
सन्दर्भ
- ↑ अंकों की शब्दावली Archived 2021-10-26 at the वेबैक मशीन. यूनिकोड कंसोर्टियम।
- ↑ "Arabic numeral". अमेरिकन हेरिटेज डिक्शनरी. होगटों मिफ्लिन हरकोर्ट. 2020. मूल से 21 नवंबर 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 नवंबर 2021.
- ↑ दन्ना, रफ़ाएल (2021-01-13). "13वीं से 16वीं शताब्दी में यूरोपीय गणित में व्यावहारिकता के तरीकों में हिन्दू-अरबी अंकों का प्रसार।". नूनकीउस. 36 (1): 5–48. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0394-7394. डीओआइ:10.1163/18253911-bja10004.