कामदेव

कामदेव
प्रेम के देवता

18 वीं सदी का उत्कीर्णन
अन्य नाम मदन, समरहरि, चित्तहर , विष्णुनन्दन , लक्ष्मीनन्दन , मनोज आदि
संबंध प्रद्युम्न, वासुदेव
मंत्र काम-गायत्री[1]
अस्त्र गन्ने का धनुष और पुष्पों का तीर
जीवनसाथी रति
माता-पिता
संतान ऋतुराज वसन्त
सवारी तोता
अपनी पत्नी रति के साथ कामदेव

कामदेव को हिंदू शास्त्रों में प्रेम और काम का देवता माना गया है।[2] उनका स्वरूप युवा और आकर्षक है। वे विवाहित हैं और रति उनकी पत्नी हैं। वे इतने शक्तिशाली हैं कि उनके लिए किसी प्रकार के कवच की कल्पना नहीं की गई है। उनके अन्य नामों में रागवृंत, अनंग, कंदर्प, मनमथ, मनसिजा, मदन, रतिकांत, पुष्पवान, पुष्पधंव आदि प्रसिद्ध हैं। कामदेव, हिंदू देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु के पुत्र और कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न, कामदेव का अवतार है।[2] कामदेव के आध्यात्मिक रूप को हिंदू धर्म में वैष्णव अनुयायियों द्वारा कृष्ण भी माना जाता है।

कामदेव के अस्त्र शस्त्र

कामदेव का धनुष प्रकृति के सबसे ज्यादा मजबूत उपादानों में से एक है। यह धनुष मनुष्य के काम में स्थिर-चंचलता जैसे विरोधाभासी अलंकारों से युक्त है। इसीलिए इसका एक कोना स्थिरता का और एक कोना चंचलता का प्रतीक होता है। वसंत, कामदेव का मित्र है इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है। इस धनुष की कमान स्वर विहीन होती है। यानी, कामदेव जब कमान से तीर छोड़ते हैं, तो उसकी आवाज नहीं होती। इसका मतलब यह अर्थ भी समझा जाता है कि काम में शालीनता जरूरी है। तीर कामदेव का सबसे महत्वपूर्ण शस्त्र है। यह जिस किसी को बेधता है उसके पहले न तो आवाज करता है और न ही शिकार को संभलने का मौका देता है। इस तीर के तीन दिशाओं में तीन कोने होते हैं, जो क्रमश: तीन लोकों के प्रतीक माने गए हैं। इनमें एक कोना ब्रह्म के आधीन है जो निर्माण का प्रतीक है। यह सृष्टि के निर्माण में सहायक होता है। दूसरा कोना विष्णु के आधीन है, जो ओंकार या उदर पूर्ति (पेट भरने) के लिए होता है। यह मनुष्य को कर्म करने की प्रेरणा देता है। कामदेव के तीर का तीसरा कोना महेश (शिव) के आधीन होता है, जो मकार या मोक्ष का प्रतीक है। यह मनुष्य को मुक्ति का मार्ग बताता है। यानी, काम न सिर्फ सृष्टि के निर्माण के लिए जरूरी है, बल्कि मनुष्य को कर्म का मार्ग बताने और अंत में मोक्ष प्रदान करने का रास्ता सुझाता है। कामदेव के धनुष का लक्ष्य विपरीत लिंगी होता है। इसी विपरीत लिंगी आकर्षण से बंधकर पूरी सृष्टि संचालित होती है। कामदेव का एक लक्ष्य खुद काम हैं, जिन्हें पुरुष माना गया है, जबकि दूसरा रति हैं, जो स्त्री रूप में जानी जाती हैं। कवच सुरक्षा का प्रतीक है। कामदेव का रूप इतना बलशाली है कि यदि इसकी सुरक्षा नहीं की गई तो विप्लव ला सकता है। इसीलिए यह कवच कामदेव की सुरक्षा से निबद्ध है। यानी सुरक्षित काम प्राकृतिक व्यवहार केलिए आवश्यक माना गया है, ताकि सामाजिक बुराइयों और भयंकर बीमारियों को दूर रखा जा सके।

कामदेव का भस्म होना

जब राक्षस तारकासुर ने आतन्क मचा दिया था तब तारकासुर के वध के लिये देवतायो ने कामदेव से विनती की कि वह शिव व पार्वती मे प्रेम बना दे क्योकि तारकासुर को वह वरदान था कि केवल शिव व पार्वती का पुत्र ही तारकासुर का वध कर सकता है। तो कामदेव तथा देवी रति कैलाश पर्वत शिव का ध्यान भन्ग करने के लिये गये पर कामदेव का बाण लगने से शिव का ध्यान तो भन्ग हो गया पर शिव को बहुत क्रोध आ गया व शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोल कर कामदेव को भस्म कर दिया तथा रति को भी अपने पति की मृत्यु पर क्रोध आ गया तो रति ने पार्वती को श्राप दिया कि पार्वती के पेट से कोई भी पु्त्र जन्म नही लेगा। यह श्राप सुनकर पार्वती दुखी हो गयी व शिव ने पार्वती को समझाकर कि उसे दुखी नही होना चाहिये तथा शिव ने पार्वती से विवाह किया। जब देवताओं ने इस श्राप के बारे मे तथा कामदेव के भस्म होने के बारे मे सुना तो वह बड़े व्याकुल हो गये तो देवो ने छल से तारकासुर को वरदान दिलाया कि तारकासुर का वध केवल शिव से जन्मा पुत्र ही कर सकता है। फिर शिव ने कामदेव को ज़िन्दा किया तथा कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया।

कामदेव के प्रमुख अंग

तमिलनाडु के थिरुक्कुरुंगुडी मंदिर में हिंदू भगवान मनमधन की मूर्ति।

इतिहास कथाओं में कामदेव के नयन, भौं और माथे का विस्तृत वर्णन मिलता है। उनके नयनों को बाण या तीर की संज्ञा दी गई है। शारीरिक रूप से नयनों का प्रतीकार्थ ठीक उनके शस्त्र तीर के समान माना गया है। उनकी भवों को कमान का संज्ञा दी गई है। ये शांत होती हैं, लेकिन इशारों में ही अपनी बात कह जाती हैं। इन्हें किसी संग या सहारे की भी आवश्यक्ता नहीं होती। कामदेव का माथा धनुष के समान है, जो अपने भीतर चंचलता समेटे होता है लेकिन यह पूरी तरह स्थिर होता है। माथा पूरे शरीर का सर्वोच्च हिस्सा है, यह दिशा निर्देश देता है।

कामदेव की सवारी

हाथी को कामदेव का वाहन माना गया है। वैसे कुछ शास्त्रों में कामदेव को तोते पर बैठे हुए भी बताया गया है, लेकिन इसे मूल अवधारणा में शामिल नहीं किया गया है। प्रकृति में हाथी एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो चारों दिशाओं में स्वच्छंद विचरण करता है। मादक चाल से चलने वाला हाथी तीन दिशाओं में देख सकता है और पीछे की तरफ हल्की सी भी आहट आने पर संभल सकता है। हाथी कानों से हर तरफ का सुन सकता है और अपनी सूंड से चारों दिशाओं में वार कर सकता है। ठीक इसी प्रकार कामदेव का चरित्र भी देखने में आता है। ये स्वच्छंद रूप से चारों दिशाओं में घूमते हैं और किसी भी दिशा में तीर छोड़ने को तत्पर रहते हैं। कामदेव किसी भी तरह के स्वर को तुरंत भांपने का माद्दा भी रखते हैं।

सन्दर्भ

  1. "History of Dharmaśāstra".
  2. Sanford, A.W. (2005). "Shifting the Center: Yak&sdotu; as on the Margins of Contemporary Practice". Journal of the American Academy of Religion. 73 (1): 89–110. डीओआइ:10.1093/jaarel/lfi005.