फिलीपीन-अमेरिकी युद्ध
फिलीपीनी-अमेरिकी युद्ध | |||||||
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अमेरिकी विस्तारवाद और स्पेनिश-अमेरिकी युद्ध के प्रभाव का भाग | |||||||
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योद्धा | |||||||
संयुक्त राज्य अमेरिका | प्रथम फिलीपीनी गणराज्य | ||||||
सेनानायक | |||||||
एलवेल एस. ओटिस आर्थर मैकआर्थर जॉन जे. पर्शिंग |
एमिलियो एग्विनाल्डो मिगुएल माल्वार लियोनार्ड वुड | ||||||
शक्ति/क्षमता | |||||||
75,000 सैनिक | 15,000 - 40,000 सैनिक |
फिलीपीनी-अमेरिकी युद्ध अमेरिका और प्रथम फिलीपीनी गणराज्य के बीच हुआ एक सैन्य संघर्ष था, जो अमेरिकी विस्तारवाद और फिलीपीनी राष्ट्रवाद के टकराव का परिणाम था। यह युद्ध 1898 के स्पेनिश-अमेरिकी युद्ध के बाद छिड़ा, जब अमेरिका ने पेरिस संधि के तहत फिलीपींस को स्पेन से प्राप्त किया, लेकिन फिलीपीनी नेताओं ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। यह संघर्ष मुख्य रूप से दो चरणों में लड़ा गया। पहला चरण 1899 से 1902 तक चला, जब संगठित युद्ध हुआ, और दूसरा चरण 1902 से 1913 तक चला, जिसमें छापामार युद्ध और मोरो विद्रोह शामिल थे। इस युद्ध ने अमेरिका को एक औपनिवेशिक शक्ति के रूप में स्थापित किया और फिलीपीनी स्वतंत्रता संघर्ष को लंबी अवधि तक प्रभावित किया।
पृष्ठभूमि
1898 में हुए स्पेनिश-अमेरिकी युद्ध में अमेरिका ने स्पेन को हराकर फिलीपींस, गुआम और प्यूर्टो रिको पर अधिकार कर लिया। दिसंबर 1898 में पेरिस संधि के तहत स्पेन ने फिलीपींस को 20 मिलियन डॉलर में अमेरिका को सौंप दिया। हालाँकि, फिलीपीनी राष्ट्रवादी नेताओं, विशेष रूप से एमिलियो एग्विनाल्डो, ने इस संधि को मानने से इनकार कर दिया और स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। अमेरिका ने इसे मान्यता नहीं दी, जिससे दोनों पक्षों में तनाव बढ़ गया।[1]
युद्ध की शुरुआत (1899-1902)
चार फरवरी 1899 को मनीला में एक अमेरिकी सैनिक और फिलीपीनी गश्ती दल के बीच टकराव हुआ, जिससे युद्ध भड़क उठा। अमेरिकी सेना, जो बेहतर हथियारों और रणनीति से लैस थी, धीरे-धीरे फिलीपीनी विद्रोहियों को पराजित करने लगी। एमिलियो एग्विनाल्डो की सेना शुरुआत में पारंपरिक युद्ध रणनीतियों का उपयोग कर रही थी, लेकिन अमेरिकी सेना की आधुनिक राइफलों और तोपों के सामने वे टिक नहीं सके। नवंबर 1899 में एग्विनाल्डो ने छापामार युद्ध की रणनीति अपनाने का आदेश दिया।[2]
तेइस मार्च 1901 को अमेरिकी सेना ने एमिलियो एग्विनाल्डो को पकड़ लिया, जिससे संगठित विद्रोह कमजोर पड़ गया। हालाँकि, स्थानीय स्तर पर संघर्ष जारी रहा। विद्रोही बलों ने गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया। अमेरिकी सेना ने इसे कुचलने के लिए कठोर रणनीति अपनाई, जिसमें गाँवों को जलाना, संदिग्ध विद्रोहियों को फाँसी देना और 'शांतिपूर्ण पुनर्वास' के नाम पर कई लोगों को जबरन स्थानांतरित करना शामिल था।[2]
छापामार युद्ध और अमेरिकी दमन (1902-1913)
युद्ध के दूसरे चरण में विद्रोहियों ने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई, लेकिन अमेरिकी सेना ने इसे कुचलने के लिए सख्त नीतियाँ अपनाईं। हजारों गाँवों को जला दिया गया, संदिग्ध विद्रोहियों को पकड़कर फाँसी दी गई और कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया। अमेरिकी सेना ने 'शांतिपूर्ण पुनर्वास' के नाम पर हजारों फिलीपीनो नागरिकों को जबरन शिविरों में भेज दिया, जहाँ उन्हें खराब परिस्थितियों में रखा गया।[3]
फिलीपींस के दक्षिणी हिस्से में मुस्लिम मोरो जनजातियों ने भी अमेरिकी शासन के खिलाफ विद्रोह किया। अमेरिकी जनरल लियोनार्ड वुड और जॉन जे. पर्शिंग ने मोरो युद्धों में निर्णायक भूमिका निभाई। 1906 में बुड दाजो की लड़ाई और 1913 में बुड बागसाक की लड़ाई के दौरान हजारों मोरो लड़ाकों को अमेरिकी सेना ने मार गिराया। ये लड़ाइयाँ अमेरिकी दमन की क्रूरता को दर्शाती हैं।[3]
परिणाम
पंद्रह जून 1913 को अंतिम मोरो विद्रोह कुचल दिया गया और अमेरिका ने फिलीपींस पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया। इस युद्ध के बाद अमेरिका ने फिलीपींस को अपने नियंत्रण में रखा और 1946 तक इसे स्वतंत्रता नहीं मिली। युद्ध के दौरान हजारों लोग मारे गए। अनुमान के अनुसार, दो लाख से अधिक फिलीपीनी नागरिक और बीस हजार से अधिक सैनिक इस संघर्ष में मारे गए।[1]
युद्ध के दौरान विकसित गुरिल्ला युद्ध रणनीतियाँ बाद में अमेरिकी सैन्य नीति का हिस्सा बन गईं, जिनका उपयोग वियतनाम और अन्य संघर्षों में किया गया। इस युद्ध ने फिलीपीनी राष्ट्रवाद को और मजबूत किया और भविष्य के स्वतंत्रता संघर्षों की नींव रखी।[2]
निष्कर्ष
फिलीपीनी-अमेरिकी युद्ध अमेरिका की औपनिवेशिक महत्वाकांक्षाओं और फिलीपीनी राष्ट्रवादियों की स्वतंत्रता की आकांक्षाओं के बीच संघर्ष का प्रतीक था। इस युद्ध के दौरान हजारों लोग मारे गए, और यह अमेरिका के इतिहास में एक विवादास्पद अध्याय बना। हालाँकि अमेरिका ने युद्ध जीत लिया, लेकिन यह संघर्ष फिलीपींस में अमेरिकी शासन के लिए स्थायी असंतोष और प्रतिरोध छोड़ गया। यह युद्ध अमेरिकी सैन्य रणनीति और वैश्विक विस्तारवाद की जटिलताओं को उजागर करता है।[2]
हालाँकि अमेरिका ने आधिकारिक रूप से युद्ध समाप्त करने की घोषणा 1902 में कर दी थी, लेकिन स्थानीय स्तर पर संघर्ष और विद्रोह जारी रहे। विशेष रूप से मोरो विद्रोह 1913 तक चला, जो दर्शाता है कि अमेरिकी शासन को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया गया था। युद्ध ने अमेरिका की औपनिवेशिक नीतियों और फिलीपींस के राजनीतिक भविष्य को गहराई से प्रभावित किया। यह संघर्ष केवल सैन्य टकराव नहीं था, बल्कि यह सत्ता, स्वतंत्रता और उपनिवेशवाद की व्यापक बहस का भी हिस्सा था।[3]
संदर्भ
सन्दर्भ की झलक
- ↑ अ आ "Philippine-American War | Facts, History, & Significance | Britannica". www.britannica.com (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2025-01-26.
- ↑ अ आ इ ई Mihara, Robert (2011), "Philippine–American War (1899–1913)", The Encyclopedia of War (अंग्रेज़ी में), John Wiley & Sons, Ltd, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-4443-3823-2, डीओआइ:10.1002/9781444338232.wbeow491, अभिगमन तिथि 2025-01-26
- ↑ अ आ इ Shaffer, Robert (2007). "The Forbidden Book: The Philippine-American War in Political Cartoons - by Abe Ignacio, Enrique de la Cruz, Jorge Emmanuel, and Helen Toribio". Peace & Change (अंग्रेज़ी में). 32 (2): 221–224. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 1468-0130. डीओआइ:10.1111/j.1468-0130.2007.00428.x.