मिस्र की पौराणिक कथायें

आदिकालीन जल के अवतार नन, सृष्टि के निर्माण के समय सूर्य देवता रा के जहाज को उठाते हुए।

मिस्र की पौराणिक कथायें (Egyptian mythology) प्राचीन मिस्र की कल्पित कथाओं का संग्रह है। इन कथाओं में आस-पास की दुनिया को समझने के अर्थों में मिस्र के देवताओं के कार्यों का वर्णन मिलता है। ये मिथक प्राचीन मिस्र के धर्म से सम्बंधित विश्वास व्यक्त करते हैं। मिथक मिस्र के लेखन और कला में अक्सर मिल जाते हैं जिनमें मुख्य रूप से लघु कथायें, भजन, अनुष्ठान ग्रंथ, अंत्येष्टि ग्रंथ और मंदिरों की सजावट वाली धार्मिक सामग्री शामिल हैं। इन स्रोतों में शायद ही कभी किसी मिथक का पूरा विवरण मिलता है और इनमें केवल संक्षिप्त अंश ही मिलता है।

प्रकृति के चक्रों से प्रेरित होकर मिस्र के लोगों ने वर्तमान में समय की आवर्ती को एक शृंखला के रूप में देखा जिसके अनुसार समय की प्रारम्भिक स्थिति रखिक थी। मिथक इस शुरूआती समय से स्थापित किये गए और इसी आधार पर वर्तमान के समय चक्र को निर्धारित करते हैं। वर्तमान घटनायें मिथक की घटनाओं का दोहराव हैं और ऐसा करने से ब्रह्माण्ड के मूल क्रम मात का नवीकरण होता है। पौराणिक अतीत के सबसे महत्त्वपूर्ण प्रकरणों में सृष्टि के निर्माण का मिथक है। इस मिथक के अनुसार आदिकालीन अराजकता से देवताओं ने ब्रह्माण्ड का निर्माण किया; पृथ्वी पर सूर्य देव रा के शासन की कहानियाँ; ओसिरिस मिथक के अनुसार मिश्र के देवता ओसिरिस, ईसिस और होरस ने विघटनकारी सेत के साथ युद्ध किया। अन्य मिथक के अनुसार वर्तमान में रा की दुनिया और उसकी दुनिया के समकक्ष दुआत के माध्य हमेशा यात्रा करता है।

मूल

मिस्र के मिथकों के आरम्भ का पता लगाना मुश्किल है। मिस्र के विद्वानों ने इसके शुरुआती चरणों के बारे में लिखित स्रोतों के आधार पर अनुमान लगाया।[1] मिस्र की पौराणिक कथाओं में व्यापक प्रभाव मिस्रवासियों के प्राकृतिक परिवेश का है। सूर्य का प्रतिदिन उदय और अस्त होना, जिससे भूमि पर प्रकाश का आना और और इससे मानवीय गतिविधियों का नियंत्रित होना; हर साल नील नदी में बाढ़ आती है जिससे मिट्टी की उर्वरता का नवीकरण (बढ़ जाना) हो जाता है और इससे कृषि में उत्पादकता बढ़ जाती है तथा इसी से मिस्र की सभ्यता आगे बढ़ती है। मिस्रवासी इन्ही मिथकों के आधार पर जल और सूर्य को जीवन के प्रतीक के रूप में देखते थे तथा समय को प्राकृतिक चक्र की शृंखला के रूप में देखते थे। इस व्यवस्थिति व्यवस्था में निरंतर व्यवधान का जोखित था जैसे कम बाढ़ में कमी आना अकाल का कारण बनता था और बाढ़ की अधिकता फसलों और भवनों को बर्बाद करने का कारण बनती थी।[2] नील घाटी विशाल रेगिस्तान से घिरी हुई थी जिसमें ऐसे लोग रहते थे जिन्हें मिस्र के लोग अपनी व्यवस्था का दुश्मन मानते थे।[3] इसी कारण से मिस्र के लोग अपनी भूमि को स्थायित्व वाला अथवा मात के स्थान के रूप में देखते थे जो खतरे में था। ये विषय—व्यवस्था, अराजकता और नवीकरण—मिस्र के धार्मिक विचारों में बार-बार दिखाई देते हैं।[4]

सन्दर्भ

  1. Anthes 1961, पृ॰प॰ 29–30.
  2. David 2002, पृ॰प॰ 1–2.
  3. O'Connor 2003, पृ॰प॰ 155, 178–179.
  4. Tobin 1989, पृ॰प॰ 10–11.

स्रोत