विष्णु पुराण
लेखक | वेदव्यास |
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मूल शीर्षक | श्रीविष्णुपुराण |
भाषा | संस्कृत |
शृंखला | पुराण |
विषय | विष्णु भक्ति |
शैली | हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ |
प्रकाशन स्थान | भारत |
पृष्ठ | २३,००० श्लोक |
वैष्णव धर्म |
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मुख्य देवता |
अन्य देवता |
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ग्रंथ |
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आचार्यगण |
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हिन्दू धर्म प्रवेशद्वार |
विष्णुपुराण अट्ठारह पुराणों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा प्राचीन है। यह श्री पराशर ऋषि द्वारा प्रणीत है। इसके प्रतिपाद्य भगवान विष्णु हैं, जो सृष्टि के आदिकारण, नित्य, अक्षय, अव्यय तथा एकरस हैं। इस पुराण में आकाश आदि भूतों का परिमाण, समुद्र, सूर्य आदि का परिमाण, पर्वत, देवतादि की उत्पत्ति, मन्वन्तर, कल्प-विभाग, सम्पूर्ण धर्म एवं देवर्षि तथा राजर्षियों के चरित्र का विशद वर्णन है।[1] भगवान विष्णु प्रधान होने के बाद भी यह पुराण विष्णु और शिव के अभिन्नता का प्रतिपादक है। विष्णु पुराण में मुख्य रूप से श्रीकृष्ण चरित्र का वर्णन है, यद्यपि संक्षेप में राम कथा का उल्लेख भी प्राप्त होता है।
अष्टादश महापुराणों में श्री विष्णुपुराण का स्थान बहुत ऊँचा है। इसमें अन्य विषयों के साथ भूगोल, ज्योतिष, कर्मकाण्ड, राजवंश और श्रीकृष्ण-चरित्र आदि कई प्रंसगों का बड़ा ही अनूठा और विशद वर्णन किया गया है। श्री विष्णु पुराण में भी इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की सर्वव्यापकता, ध्रुव प्रह्लाद, वेनु, आदि राजाओं के वर्णन एवं उनकी जीवन गाथा, विकास की परम्परा, कृषि गोरक्षा आदि कार्यों का संचालन, भारत आदि नौ खण्ड मेदिनी, सप्त सागरों के वर्णन, अद्यः एवं अर्द्ध लोकों का वर्णन, चौदह विद्याओं, वैवस्वत मनु, इक्ष्वाकु, कश्यप, पुरुवंश, कुरुवंश, यदुवंश के वर्णन, कल्पान्त के महाप्रलय का वर्णन आदि विषयों का विस्तृत विवेचन किया गया है। भक्ति और ज्ञान की प्रशान्त धारा तो इसमें सर्वत्र ही प्रच्छन्न रूप से बह रही है।
यद्यपि यह पुराण विष्णुपरक है तो भी भगवान शंकर के लिये इसमे कहीं भी अनुदार भाव प्रकट नहीं किया गया। सम्पूर्ण ग्रन्थ में शिवजी का प्रसंग सम्भवतः श्रीकृ्ष्ण-बाणासुर-संग्राम में ही आता है, वहाँ स्वयं भगवान कृष्ण महादेवजी के साथ अपनी अभिन्नता प्रकट करते हुए श्रीमुखसे कहते हैं-
“ | त्वया यदभयं दत्तं तद्दत्तमखिलं मया। मत्तोऽविभिन्नमात्मानं द्रुष्टुमर्हसि शंकर।
योऽहं स त्वं जगच्चेदं सदेवासुरमानुषम्। मत्तो नान्यदशेषं यत्तत्त्वं ज्ञातुमिहार्हसि। अविद्यामोहितात्मानः पुरुषा भिन्नदर्शिनः। वन्दति भेदं पश्यन्ति चावयोरन्तरं हर॥ |
„ |
कथा एवं विस्तार
- विस्तार
- इस पुराण में इस समय सात हजार श्लोक उपलब्ध हैं। वैसे कई ग्रन्थों में इसकी श्लोक संख्या तेईस हजार बताई जाती है।[2] विष्णु पुराण में पुराणों के पांचों लक्षणों अथवा वर्ण्य-विषयों-सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित का वर्णन है। सभी विषयों का सानुपातिक उल्लेख किया गया है। बीच-बीच में अध्यात्म-विवेचन, कलिकर्म और सदाचार आदि पर भी प्रकाश डाला गया है।
- कथा
- यह एक वैष्णव महापुराण है, यह सब पातकों का नाश करने वाला है। इसकी कथा निम्नलिखित भागों मे वर्णित है-
- पूर्व भाग-प्रथम अंश
- इसके पूर्वभाग में शक्ति नन्दन पराशर ने मैत्रेय को छ: अंश सुनाये है, उनमें प्रथम अंश में इस पुराण की अवतरणिका दी गयी है। आदि कारण सर्ग देवता आदि जी उत्पत्ति समुद्र मन्थन की कथा दक्ष आदि के वंश का वर्णन ध्रुव तथा पृथु का चरित्र प्राचेतस का उपाख्यान प्रहलाद की कथा और ब्रह्माजी के द्वारा देव तिर्यक मनुष्य आदि वर्गों के प्रधान प्रधान व्यक्तियो को पृथक पृथक राज्याधिकार दिये जाने का वर्णन इन सब विषयों को प्रथम अंश कहा गया है।
- पूर्व भाग-द्वितीय अंश
- प्रियव्रत के वंश का वर्णन द्वीपों और वर्षों का वर्णन पाताल और नरकों का कथन, सात स्वर्गों का निरूपण अलग अलग लक्षणों से युक्त सूर्यादि ग्रहों की गति का प्रतिपादन भरत चरित्र मुक्तिमार्ग निदर्शन तथा निदाघ और ऋभु का संवाद ये सब विषय द्वितीय अंश के अन्तर्गत कहे गये हैं।
- पूर्व भाग-तीसरा अंश
- मन्वन्तरों का वर्णन वेदव्यास का अवतार, तथा इसके बाद नरकों से उद्धार का वर्णन कहा गया है। सगर और और्ब के संवाद में सब धर्मों का निरूपण श्राद्धकल्प तथा वर्णाश्रम धर्म सदाचार निरूपण तथा माहामोह की कथा, यह सब तीसरे अंश में बताया गया है, जो पापों का नाश करने वाला है।
- पूर्व भाग-चतुर्थ अंश
- सूर्यवंश की पवित्र कथा, चन्द्रवंश का वर्णन तथा नाना प्रकार के राजाओं का वृतान्त चतुर्थ अंश के अन्दर है।
- पूर्व भाग-पंचम अंश
- श्रीकृष्णावतार विषयक प्रश्न, गोकुल की कथा, बाल्यावस्था में श्रीकृष्ण द्वारा पूतना आदि का वध, कुमारावस्था में अघासुर आदि की हिंसा, किशोरावस्था में कंस का वध, मथुरापुरी की लीला, तदनन्तर युवावस्था में द्वारका की लीलायें समस्त दैत्यों का वध, भगवान के प्रथक प्रथक विवाह, द्वारका में रहकर योगीश्वरों के भी ईश्वर जगन्नाथ श्रीकृष्ण के द्वारा शत्रुओं के वध के द्वारा पृथ्वी का भार उतारा जाना, और अष्टावक्र जी का उपाख्यान ये सब बातें पांचवें अंश के अन्तर्गत हैं।
- पूर्व भाग-छठा अंश
- कलियुग का चरित्र चार प्रकार के महाप्रलय तथा केशिध्वज के द्वारा खाण्डिक्य जनक को ब्रह्मज्ञान का उपदेश इत्यादि छठा अंश कहा गया है।
- उत्तरभाग
- इसके बाद विष्णु पुराण का उत्तरभाग प्रारम्भ होता है, जिसमें शौनक आदि के द्वारा आदरपूर्वक पूछे जाने पर सूतजी ने सनातन विष्णुधर्मोत्तर नामसे प्रसिद्ध नाना प्रकार के धर्मों कथायें कही है, अनेकानेक पुण्यव्रत यम नियम धर्मशास्त्र अर्थशास्त्र वेदान्त ज्योतिष वंशवर्णन के प्रकरण स्तोत्र मन्त्र तथा सब लोगों का उपकार करने वाली नाना प्रकार की विद्यायें सुनायी गयीं है, यह विष्णुपुराण है, जिसमें सब शास्त्रों के सिद्धान्त का संग्रह हुआ है। इसमे वेदव्यासजी ने वाराकल्प का वृतान्त कहा है, जो मनुष्य भक्ति और आदर के साथ विष्णु पुराण को पढते और सुनते है, वे दोनों यहां मनोवांछित भोग भोगकर विष्णुलोक में जाते है।
विष्णु पुराण: एक दिव्य गाथा (Vishnu Purana: A Divine Tale)
नमस्कार दोस्तों! आज हम बात करेंगे एक ऐसे ग्रंथ की जो भारतीय संस्कृति और धर्म का एक अभिन्न अंग है - विष्णु पुराण। ये पुराण, अठारह मुख्य पुराणों में से एक है, और भगवान विष्णु के महिमा का वर्णन करता है। आइए, इस दिव्य गाथा के कुछ पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं।
विष्णु पुराण क्या है? (What is Vishnu Purana?)
विष्णु पुराण, पराशर ऋषि द्वारा रचित माना जाता है, जो महर्षि वशिष्ठ के पौत्र थे। ये पुराण छह अंशों में विभाजित है और इसमें भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों, उनकी लीलाओं, सृष्टि की उत्पत्ति, प्रलय, धर्म, कर्म, और मोक्ष जैसे विषयों का विस्तार से वर्णन है।
मुख्य विषय (Main Topics):
- सृष्टि की उत्पत्ति (Origin of the Universe): विष्णु पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति का बड़ा ही सुंदर वर्णन है। इसमें बताया गया है कि कैसे भगवान विष्णु से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए और उन्होंने इस संसार की रचना की।
- भगवान विष्णु के अवतार (Avatars of Lord Vishnu): इस पुराण में भगवान विष्णु के दस मुख्य अवतारों (दशावतार) का वर्णन मिलता है, जिनमें मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि शामिल हैं। विशेष रूप से, कृष्ण लीलाओं का वर्णन अत्यंत ही मनमोहक है।
- प्रहलाद की कथा (The Story of Prahalad): भक्त प्रहलाद और उनके पिता हिरण्यकशिपु की कथा, जो भगवान विष्णु की भक्ति की महिमा का प्रतीक है, विष्णु पुराण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- ध्रुव की कथा (The Story of Dhruva): बालक ध्रुव की अटूट भक्ति और भगवान विष्णु द्वारा उन्हें ध्रुव तारा के रूप में स्थापित करने की कथा भी इस पुराण में वर्णित है।
- भूगोल और खगोल (Geography and Astronomy): विष्णु पुराण में प्राचीन भारतीय भूगोल और खगोल विज्ञान का भी वर्णन मिलता है, जिसमें पृथ्वी, सूर्य, चंद्रमा, और नक्षत्रों की स्थिति का उल्लेख है।
विष्णु पुराण का महत्व (Importance of Vishnu Purana):
विष्णु पुराण न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि ये हमें प्राचीन भारतीय संस्कृति, इतिहास, और ज्ञान की भी जानकारी देता है। ये हमें धर्म, कर्म, और मोक्ष के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है और भगवान विष्णु की भक्ति में लीन होने का संदेश देता है।
- विष्णु पुराण: एक पौराणिक ग्रंथ की अद्भुत यात्रा** विष्णु पुराण हिंदू धर्म के प्रमुख अठारह पुराणों में से एक है, जिसमें भगवान विष्णु की महिमा, अवतार और उनके विविध रूपों का वर्णन है। यह पुराण न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं और सिद्धांतों का भी वर्णन मिलता है। **भगवान विष्णु का महत्व:** भगवान विष्णु हिंदू धर्म के प्रमुख त्रिदेवों में से एक हैं। उन्हें सृष्टि का पालनकर्ता माना जाता है। विष्णु पुराण में भगवान विष्णु के दशावतार का वर्णन है - जिसमें मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि अवतार शामिल हैं। हर अवतार में भगवान विष्णु ने अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना की। **पुराण की संरचना:** विष्णु पुराण में कुल छः अंश (खंड) हैं: 1. प्रथम अंश: सृष्टि का वर्णन, ध्रुव और प्रह्लाद की कथाएँ। 2. द्वितीय अंश: भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों का वर्णन। 3. तृतीय अंश: जीवन के चार आश्रम, और धर्म के सिद्धांत। 4. चतुर्थ अंश: विभिन्न राजाओं और वंशों का वर्णन। 5. पंचम अंश: भगवान कृष्ण की लीलाएँ और महाभारत से जुड़ी कथाएँ। 6. षष्ठ अंश: कलियुग के लक्षण और भविष्यवाणियाँ।
- विष्णु पुराण — भारतीय अध्यात्मा के सार विष्णु पुराण हिंदु धर्म के छे चेद और एक अमूल्य पुराण है, जो विश्व के पूजाओं का वर्णन करता है और मुक्तिम जीवन की कहानीयाँ ही नहीं धार्मिक पुरुष्ठ के स्पष्ट प्रदान करता है। यह चीन वैष्णव्य के ब्रह्म निर्माण, प्रशन्न और प्रजापती की कहानीयों को रोचक करता है।
विष्णु पुराण के निर्मात्म और रचना
विष्णु पुराण छे चेद खंडौं में बंटी की गई कहा गया है। ये छे खंडौं कुली और उपनिषद संहित हैं:
- विष्णु खंड।
- प्रजापती खंड।
- चतुर्थ खंड।
- आनुख खंड।
- सम्प्राग खंड।
प्रत्येक खंडों में ग्रमी विष्णु, प्रकृति, पुरुष्ठ और श्री विष्णु की प्रशंसक कहानीयां निर्मित हैं।
विष्णु की प्रकृति
विष्णु पुराण के आरंभ में सृष्टि, चतुर्णों की क्रमनी, चतुर्थों के जीवन और कालीन्दक चक्रक की कुन्पें दी गई है। यह काथा कर्मकान्ड ही नहीं जीवन को चर्चाक करती है बल्कि मानवीयों की धार्मिक जीवन के चार पर जो दीप की एकता है।
जीवन के विकास की प्रसंगतियां
विष्णु पुराण के प्रसंग की चार काथाएं की मुख्य चार है:
- आचार समजस: जीव के घनट के न्योकों की सुप्ति की योजना करती है।
- कार्मिक व्यवस्था: कर्म की पुर्णता और उनकी नेति के जीवन की चर्चा करना।
- प्रशन: जीवन के सम्पूर्ण में नीति के मुल्य चार का उपाक्रमें।
विष्णु पुराण की कथाकथाएं भव्याक प्रेरणीत्व के प्रटीक्ष और जीवन के घार में प्रक्रमको जागृत करती है। ये एक आध्यात्मिक अहवालोकन है, जो जीवन के प्रत्येकिों को आलोकिक परप्रावित करती है।
- विष्णु पुराण का महत्व:** विष्णु पुराण में धर्म, भक्ति और सदाचार पर विशेष जोर दिया गया है। यह ग्रंथ न केवल भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करता है, बल्कि जीवन के नैतिक और सामाजिक मूल्यों का भी प्रतिपादन करता है। इसके माध्यम से व्यक्ति को जीवन की वास्तविकता, सत्य और धर्म का मार्गदर्शन मिलता है। विष्णु पुराण एक ऐसा ग्रंथ है जो आज भी हमारी जीवनशैली और विचारधारा को प्रभावित करता है। इसके अध्ययन से हमें न केवल धार्मिक ज्ञान प्राप्त होता है, बल्कि यह हमें सही और गलत के बीच अंतर समझने में भी मदद करता है। आप भी इस पवित्र ग्रंथ का अध्ययन करें और भगवान विष्णु की महिमा का अनुभव करें। हर श्लोक में छिपे गहरे अर्थों को समझें और अपनी जीवनशैली को सकारात्मक दिशा में परिवर्तित करें। 😊📜🔱 निष्कर्ष (Conclusion): विष्णु पुराण एक अनमोल ग्रंथ है जो हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं पर मार्गदर्शन करता है। ये हमें भगवान विष्णु की महिमा का ज्ञान कराता है और हमें धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। हमें इस पुराण का अध्ययन करना चाहिए और इसके ज्ञान को अपने जीवन में उतारना चाहिए।
रचना काल
विष्णुपुराण की रचना काल का ठीक ज्ञान नहीं है। इस पर विद्वान एकमत नहीं हैं। विभिन्न विद्वानों ने इसका रचनाकाल जो माना है, वह निम्नलिखित है-
रामचन्द्र दीक्षित (1951) : 700-300 ईसापूर्व
विन्सेंट स्मिथ (1908) : 400-300 ईसापूर्व
मारिज विण्टरनित्ज (१९३२) : सम्भवतः प्रथम सहस्राब्दी का आरम्भिक काल
राजेन्द्रचन्द्र हाजरा (1940) : 275-325 ई०
वेंडी डोनिगर (Wendy Dungier ; 1988) : 450 ई०
चिन्तामण विनायक वैद्य (1925) : ~9वीं शताब्दी
रॉय (1968) : ९वीं शताब्दी के बाद
होरेस हेमन विल्सन (१८६४) : इन्होंने यह स्वीकार किया गया कि परम्परा इस ग्रन्थ को पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व का बताती है और इस ग्रन्थ की जड़ें वैदिक साहित्य में हैं, लेकिन उनके विश्लेषण के बाद सुझाव उन्होंने सुझाव दिया गया कि इसकी वर्तमान पांडुलिपियां ११वीं शताब्दी की हो सकती हैं।
सन्दर्भ
- ↑ "गीताप्रेस डाट काम". मूल से 23 जून 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 मई 2010.
- ↑ "ब्रज डिस्कवरी". मूल से 12 मई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 मई 2010.
इन्हें भी देखें
बाहरी कडियाँ
- विष्णुपुराणम् (संस्कृत विकिस्रोत)
- विष्णुपुराण का भारत
- ज्ञानामृतम् - वेद, अरण्यक, उपनिषद् आदि पर सम्यक जानकारी
- जानिए विष्णु पुराण में क्या लिखा है। Archived 2023-08-05 at the वेबैक मशीन