जूनागढ़

जूनागढ़
Junagadh
જુનાગઢ
जूनागढ़ is located in गुजरात
जूनागढ़
जूनागढ़
गुजरात में स्थिति
निर्देशांक: 21°31′12″N 70°27′47″E / 21.520°N 70.463°E / 21.520; 70.463निर्देशांक: 21°31′12″N 70°27′47″E / 21.520°N 70.463°E / 21.520; 70.463
देश भारत
प्रान्तगुजरात
ज़िलाजूनागढ़ ज़िला
जनसंख्या (2011)
 • कुल3,19,462
भाषा
 • प्रचलितगुजराती
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)
गिरनार पर अशोक के शिलालेख
जूनागढ़ का एक दृश्य
दामोदर कुण्ड से गिरनार का दृश्य
उपरकोट बौद्ध गुफ़ाएँ

जूनागढ़ उच्चारण (गुजराती: જુનાગઢ) भारत के गुजरात राज्य में जूनागढ़ जिले का मुख्यालय है। यह शहर गुजरात का 7वां सबसे बड़ा शहर है, जो राज्य की राजधानी गांधीनगर और अहमदाबाद से 355 किमी दक्षिण पश्चिम में गिरनार पहाड़ियों की तलहटी में स्थित है। शाब्दिक रूप से अनुवादित, जूनागढ़ का अर्थ है "पुराना किला"। एक वैकल्पिक व्युत्पत्ति नाम को "योनागढ़" से लिया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ "योना (यूनानी) का शहर" है, जो इंडो-ग्रीक साम्राज्य के तहत शहर के प्राचीन निवासियों को संदर्भित करता है। इसे "सोरथ" के नाम से भी जाना जाता है, जो जूनागढ़ की पूर्व रियासत का नाम था। भारत और पाकिस्तान के बीच एक संक्षिप्त संघर्ष के बाद, जूनागढ़ 9 नवंबर 1947 को भारत में शामिल हो गया। यह सौराष्ट्र राज्य और बाद में बॉम्बे राज्य का हिस्सा था। 1960 में, महा गुजरात आंदोलन के बाद, यह नवगठित गुजरात राज्य का हिस्सा बन गया। ।[1][2][3]

गुजरात विधान सभा चुनाव 2022 में जूनागढ़ विधान सभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी BJP ने जीत हासिल की है

विवरण

जूनागढ़ शहर गिरनार पहाड़ियों के निचले हिस्से पर स्थित है। मंदिरों की भूमि जूनागढ़ गिरनार हिल की गोद में बसा हुआ है। यह मुस्लिम शासक बाबी नवाब के राज्य जूनागढ़ की राजधानी था। गुजराती भाषा में जूनागढ़ का अर्थ होता है प्राचीन किला। इस पर कई वंशों ने शासन किया। यहां समय-समय पर हिंदू, बौद्ध, जैन और मुस्लिम, इन चार प्रमुख धर्मों का प्रभाव रहा है। विभिन्न राजनीतिक और धार्मिक शाक्तियों के समन्वय के कारण जूनागढ़ बहुमूल्य संस्कृति का धनी रहा है। इसका उदाहरण है जूनागढ़ की अनोखी स्थापत्य कला, जिसकी झलक जूनागढ़ में आज भी देखी जा सकती है। जूनागढ़ का क्षेत्र 160 किमी वर्ग (60 वर्ग मील) है।[[4]] जूनागढ़ का क्षेत्र रैंक 7th है।[[5]] डाक कोड 362001 - 36004 है।[[6]] टेलीफोन कोड 0285 है।[[7]] वाहन पंजीकरण GJ-11 है।

जूनागढ़ दो भागों में विभक्‍त है। एक मुख्‍य शहर है जिसके चारो ओर दीवारों से किलेबन्‍दी की गई है। दूसरा पश्‍िचम में है जिसे अपरकोट कहा जाता है। अपरकोट एक प्राचीन दुर्ग है जो शहर से बहुत ऊपर स्थित है। यह किला मौर्य और गुप्त शासकों के लिए बहुत मजबूत साबित हुआ क्योंकि इस किले ने विशिष्ट स्थान पर स्थित होने और दुर्गम राह के कारण पिछले 1000 वर्षो से लगभग 16 आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया। अपरकोट का प्रवेशद्वार हिंदू तोरण स्थापत्य कला का अच्छा नमूना है। बौद्ध गुफा और बाबा प्यारा की गुफा (दूसरी शताब्दी), अड़ी-काड़ी वाव, नवघन कुआं और जामी मस्जिद यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल है।

इतिहास

आरंभिक इतिहास

किंवदंती के अनुसार, रोर राजवंश के संस्थापक राजा धज, रोर कुमार उर्फ राय डायच ने ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी में जुनागढ़ रियासत पर शासन किया था। एक प्रारंभिक संरचना, उपरकोट किला, शहर के मध्य में एक पठार पर स्थित है। इसका निर्माण मूल रूप से 319 ईसा पूर्व में मौर्य वंश के दौरान चंद्रगुप्त द्वारा किया गया था। यह किला 6वीं शताब्दी तक उपयोग में रहा, जब इसे लगभग 300 वर्षों के लिए छोड़ दिया गया, फिर 976 ईस्वी में अहीर-चूड़ासमा शासक ग्रहरिपु द्वारा इसे फिर से खोजा गया। बाद में किले को 1000 साल की अवधि में 16 बार घेर लिया गया। एक असफल घेराबंदी बारह वर्षों तक चली।

ऊपरकोट किले के 2 किलोमीटर (1.2 मील) के भीतर एक बड़े शिलाखंड पर अशोक के चौदह शिलालेखों वाला एक शिलालेख है। शिलालेख पाली जैसी भाषा में ब्राह्मी लिपि में हैं और 250 ईसा पूर्व के हैं। उसी चट्टान पर बाद में संस्कृत में एक शिलालेख है, जिसे 150 ईस्वी के आसपास मालवा के शक (सीथियन) शासक और पश्चिमी क्षत्रप वंश के सदस्य महाक्षत्रप रुद्रदामन प्रथम द्वारा जोड़ा गया था, और जिसका वर्णन इस प्रकार किया गया है "किसी भी हद तक का सबसे पुराना ज्ञात संस्कृत शिलालेख"। एक अन्य शिलालेख लगभग 450 ई.पू. का है और इसमें अंतिम गुप्त सम्राट स्कंदगुप्त का उल्लेख है। इस क्षेत्र में 500 ई.पू. से भी पहले की चट्टानों को काटकर बनाई गई पुरानी बौद्ध गुफाओं में पत्थर की नक्काशी और फूलों का काम किया गया है। किले के उत्तर में खपरा कोडिया गुफाएँ और किले के दक्षिण में बावा प्यारा गुफाएँ भी हैं। बावा प्यारा गुफाओं में बौद्ध और जैन दोनों धर्मों की कलाकृतियाँ हैं।

मैत्रक वंश ने 475 से 767 ई. तक गुजरात पर शासन किया। राजवंश के संस्थापक, जनरल भटार्क, जो गुप्त साम्राज्य के तहत सौराष्ट्र प्रायद्वीप के सैन्य गवर्नर थे, ने 5वीं शताब्दी की अंतिम तिमाही के आसपास खुद को गुजरात के स्वतंत्र शासक के रूप में स्थापित किया।

कृषि और खनिज

जूनागढ़ के प्रमुख कृषि उत्पादों में मुंगफली, कपास, ज्वार-बाजरा, दलहन, तिलहन और गन्ना शामिल हैं। वेरावल तथा पोरबंदर यहाँ के प्रमुख बंदरगाह हैं और यहाँ मछली पकड़ने का काम भी होता है। इस नगर में वाणिज्यिक एवं निर्माण केंद्र हैं।

शिक्षा

यहाँ गुजरात कृषि विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालय हैं। यहाँ के शैक्षणिक संस्थानों में कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी और द जे.सी ई. टी. एस. कामर्स कॉलेज शामिल हैं। और नरसिंह महेता युनि. ,नोबल युनि.,डॉ.सुभाष युनि.है।गुजरात राज्य का सबसे बडा और पुराना पुलिस तालिम महाविद्यालय, मेडिकल कॉलेज, नर्सिंग कॉलेज ,टेक्निकल कॉलेज ईत्यादी प्रमुख शिक्षा केन्द्रो उपरांत 125 सालसे भी पुराना बहाउद्दीन आर्ट्स एण्ड सायन्स कॉलेज की वजहसे शिक्षाका मुख्य केंद्र है।

प्रमुख आकर्षण

अशोक के शिलालेख (आदेशपत्र)

गिरनार जाने के रास्ते पर सम्राट अशोक द्वारा लगवाए गए शिलालेखों को देखा जा सकता है। ये शिलालेख विशाल पत्‍थरों पर उत्‍कीर्ण हैं। अशोक ने कुल चौदह शिलालेख लगवाए थे। इन शिलालेखों में राजकीय आदेश खुदे हुए हैं। इसके अतिरिक्‍त इसमें नैतिक नियम भी लिखे हुए हैं। ये आदेशपत्र राजा के परोपकारी व्यवहार और कार्यो का प्रमाणपत्र है। अशोक के शिलालेखों पर ही शक राजा रुद्रदाम तथा [स्‍कंदगुप्‍त] के खुदवाये अभिलेखों को देखा जा सकता है। रुद्रदाम ने 150 ई. में तथा स्‍कंदगुप्‍त ने 450 ई. में ये अभिलेख खुदवाये थे। इस अभिलेख की एक विशेषता यह भी है कि रुद्रदाम के अभिलेख को ही संस्‍कृत भाषा का प्रथम शिलालेख माना जाता है।

उपरकोट किला

माना जाता है कि इस किले का निर्माण यादवों ने द्वारिका आने पर करवाया था (जो कृष्ण भगवान से संबंधित थे)। अपरकोट की दीवारें किसी-किसी स्थान पर 20 मीटर तक ऊंची है। किले पर की गई नक्‍काशी अभी भी सुरक्षित अवस्‍था में है। इस किले में बहुत सी रूचिजनक और दर्शनीय वस्तुओं में पश्चिमी दीवार पर लगी दो तोपे हैं। इन तोपों का नाम नीलम और कांडल है। इन तोपों का निर्माण मिस्र में हुआ था। इस किले के चारों ओर 200 ईस्वी पूर्व से 200 ईस्वी तक की बौद्ध गुफाएं है।

सक्करबाग प्राणीउद्यान

जूनागढ़ का यह प्राणीउद्यान गुजरात का सबसे पुराना प्राणीउद्यान है। यह प्राणीउद्यान गिर के विख्यात शेर के अलावा चीते और तेंदुआ के लिए प्रसिद्ध है। गिर के शेरों को लुप्‍तप्राय होने से बचाने के लिए जूनागढ़ के नवाब ने 1863 ईस्वी में इस प्राणीउद्यान का निर्माण करवाया था। यहां शेर के अलावा बाघ, तेंदुआ, भालू, गीदड़, जंगली गधे, सांप और चिड़िया भी देखने को मिलती है। यह प्राणीउद्यान लगभग 500 एकड़ में फैला हुआ है।

गिर वन्यजीव अभयारण्य

वन्य प्राणियों से समृद्ध गिर अभयारण्य लगभग 1424 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इस वन्य अभयारण्य में अधिसंख्‍य मात्रा में पुष्प और जीव-जन्तुओं की प्रजातियां मिलती है। यहां स्तनधारियों की 30 प्रजातियां, सरीसृप वर्ग की 20 प्रजातियां और कीडों- मकोडों तथा पक्षियों की भी बहुत सी प्रजातियां पाई जाती है। दक्षिणी अफ्रीका के अलावा विश्‍व का यही ऐसा एकलौता स्थान है जहां शेरों को अपने प्राकृतिक आवास में रहते हुए देखा जा सकता है। जंगल के शेर के लिए अंतिम आश्रय के रूप में गिर का जंगल, भारत के महत्वपूर्ण वन्य अभयारण्यों में से एक है। गिर के जंगल को सन् 1969 में वन्य जीव अभयारण्य बनाया गया और 6 वर्षों बाद इसका 140.4 वर्ग किलोमीटर में विस्तार करके इसे राष्ट्रीय उद्यान के रूप में स्थापित कर दिया गया। यह अभ्‍यारण्‍य अब लगभग 258.71 वर्ग किलोमीटर तक विस्तृत हो चुका है। वन्य जीवों को सरक्षंण प्रदान करने के प्रयास से अब शेरों की संख्या बढकर 312 हो गई है।

सूखें पताड़ वाले वृक्षों, कांटेदार झाड़ियों के अलावा हरे-भरे पेड़ों से समृद्ध गिर का जंगल नदी के किनारे बसा हुआ है। यहां के मुख्य वृक्षों में सागवान, शीशम, बबूल, बेर, जामुन, बील आदि है।

भारत के सबसे बड़े कद का हिरण, सांभर, चीतल, नीलगाय, चिंकारा और बारहसिंगा भी यहां देखा जा सकता है साथ ही यहां भालू और बड़ी पूंछ वाले लंगूर भी भारी मात्रा में पाए जाते है। कुछ ही लोग जानते होंगे कि गिर भारत का एक अच्छा पक्षी अभयारण्य भी है। यहां फलगी वाला बाज, कठफोडवा, एरीओल, जंगली मैना और पैराडाइज फलाईकेचर भी देखा जा सकता है। साथ ही यह अधोलिया, वालडेरा, रतनघुना और पीपलिया आदि पक्षियों को भी देखने के लिए उपयुक्त स्थान है। इस जंगल में मगरमच्छों के लिए फॉर्म का विकास किया जा रहा है जो यहां के आकर्षण को ओर भी बढा देगा।

दर्शकों के लिए गिर वन्य अभयारण्य मध्य अक्टूबर महीने से लेकर मध्य जून तक खोला जाता है लेकिन मानसून के मौसम में इसे बन्द कर दिया जाता है।

बौद्ध गुफा

बौद्ध गुफा चट्टानों को काट कर बनायी गई है। इस गुफा में सुसज्जित खंभे, गुफा का अलंकृत प्रवेशद्वार, पानी के संग्रह के लिए बनाए गए जल कुंड, चैत्य हॉल, वैरागियों का प्रार्थना कक्ष, चैत्य खिडकियां स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण पेश करती हैं। शहर में स्थित खापरा-कोडिया की गुफाएं भी देखने लायक है।

अड़ी-कड़ी वाव और नवघन कुआं

अड़ी-काड़ी वेव और नवघन कुआं का निर्माण चूडासमा राजपूतों ने कराया था। इन कुओं की संरचना आम कुओं से बिल्‍कुल अलग तरह की है। पानी के संग्रह के लिए इसकी अलग तरह की संरचना की गई थी। ये दोनों कुएं युद्ध के समय दो सालों तक पानी की कमी को पूरा कर सकते थे। अड़ी-कड़ी वाव तक पहुंचने के लिए 120 पायदान नीचे उतरना होता है जबकि नवघन कुंआ 52 मीटर की गहराई में है। इन कुओं तक पहुंचने के लिए गोलाकार सीढियां बनी हुई है। नवघन कुंआ महाराजा नवघन रा खंगार एवं रानी की वाव उदयमति जो महाराजा रा खंगार की पुत्री के द्बारा सोलंकी शासक भीम प्रथम की स्मृति में 1063 में करवाया गया था, जो भी स्थापत्य कला का जीवंत उदाहरण है!

जामी मस्जिद

जामी मस्जिद मूलत:महाराजा रा खंगार की महारानी रानकदेवी का रानीवास था,जिसमें महारानी अपनी दासियों सहित निवास करती थी । गुजरात के शाषक राजा मोहम्मद बेगड़ा ने जूनागढ़ फतह के दौरान (1470 ईस्वी) अपनी विजय की याद में इस स्थान पर बेहद ही विशालकाय मस्जिद का निर्माण कराया एवं उसका नाम जामी मस्जिद जुनागढ़ रखा था। यहां अन्य आकर्षणों में नीलम तोप है जिसे तुर्की के राजा सुलेमान के आदेश पर पुर्तगालियों से लड़ने के लिए बनवाया गया था। यह तोप मिस्र से दीव के रास्ते जुनागढ़ आई थी।

अन्य दर्शनीय स्थल

अम्बे माता का मंदिर

अम्बे माता का मंदिर पहाड़ की चोटी पर स्थित है। यहां पर नवविवाहित जोड़े शादी के बाद अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए माता का आशीर्वाद लेने आते है।

मल्लिनाथ का मंदिर

9वें जैन तीर्थंकर मल्लिनाथ की याद में 1177 ईस्वी पूर्व में दो भाईयों ने इस त्रिमंदिर का निर्माण करवाया था। उत्सवों के समय यह मंदिर साधुओं के रहने का पंसदीदा स्थान होता है। नवंबर-दिसम्बर महीने की कार्तिक पूर्णिमा पर यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।

जूनागढ संग्रहालय

जू में स्थित इस संग्रहालय में हस्तलिपि, प्राचीन सिक्के, चित्रकला और पुरातत्वीय साहित्य के साथ-साथ प्राकृतिक इतिहास का एक विभाग है।

आयुर्वेदिक कॉलेज

जूनागढ़ के पूर्व नवाब के राजमहल सदरबाग में स्थित यह महाविद्यालय आयुर्वेदिक दवाईयों का एक छोटा संग्रहालय है।

दरबार हॉल संग्रहालय

यह वह हॉल है जहां जूनागढ़ के नवाब अपने दरबार का आयोजन करते थे। यहां पर चित्रों, पालकियों और शस्त्रों के प्रर्दशन के बहुत से विभाग बने हुए है।

नरसिंह मेहता का चबूतरा

यह एक विशाल स्‍थान है। यह सादगीपूर्ण तरीके से बना हुआ है। इसी जगह पर 15वीं शताब्दी में महान संत कवि नरसिंह मेहता के प्रवचनों और सभाओं का आयोजन होता था। यहां पर गोपनाथ का एक छोटा मंदिर तथा श्री दामोदर राय जी और नरसिंह मेहता की प्रतिमाएं भी है।

दामोदर कुंड

इस पवित्र कुंड के चारों ओर घाट (नहाने के लिए) का निर्माण किया गया है। ऐसा विश्‍वास किया जाता है कि इस घाट पर भगवान श्री कृष्ण ने महान संत कवि नरसिंह मेहता को फूलों का हार पहनाया था।

आवागमन

हवाई मार्ग

जूनागढ़ से तकरीबन 40 किलोमीटर की दूरी पर केशोद और 113 किलोमीटर की दूरी पर पोरबन्दर एयरपोर्ट है। राजकोट भी हवाई मार्ग से इससे जुड़ा हुआ है।

रेल मार्ग

जूनागढ़ रेलवे स्टेशन अहमदाबाद और राजकोट रेलवे लाईन पर पड़ता है

सड़क मार्ग

जूनागढ़ राजकोट से (102 किलोमीटर), पोरबंदर से (113 किलोमीटर) और अहमदाबाद से (327 किलोमीटर) की दूरी पर स्थित है। साथ ही यह वरावल से भी जुड़ा हुआ है। स्थानीय परिवहन: ऑटो रिक्शा और स्थानीय बसों से आसानी से जूनागढ़ पहुंचा जा सकता है। प्राइवेट और राज्य परिवहन की लक्जरी बसें आसानी से उपलब्ध हो जाती है और विभिन्न प्रकार की कार भी किराये पर मिलती है।

जनसंख्या

2001 की जनगणना के अनुसार जूनागढ़ शहर की जनसंख्या 1,68,686 है और जूनागढ़ ज़िले की जनसंख्या 24,48,427 है।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  1. "Gujarat, Part 3," People of India: State series, Rajendra Behari Lal, Anthropological Survey of India, Popular Prakashan, 2003, ISBN 9788179911068
  2. "Dynamics of Development in Gujarat," Indira Hirway, S. P. Kashyap, Amita Shah, Centre for Development Alternatives, Concept Publishing Company, 2002, ISBN 9788170229681
  3. "India Guide Gujarat," Anjali H. Desai, Vivek Khadpekar, India Guide Publications, 2007, ISBN 9780978951702
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 3 जनवरी 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जून 2020.
  5. "संग्रहीत प्रति". मूल से 6 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जून 2020.
  6. "संग्रहीत प्रति". मूल से 16 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जून 2020.
  7. https://junagadh.nic.in/std-pin-codes/